बेमतलब का काम मत करो | पंचतंत्र की कहानियाँ

एक नगर के समीप किसी व्यापारी का मकान बन रहा था।
वहाँ पर लकड़ी का काम करने वाले कारीगर एक लट्ठा चीर रहे थे। लट्ठा आधा तो कटा था किदोपहर के भोजन का समय हो गया। 

बढ़ई आधे चीरे लढे में कील फंसकरभोजन करने चले गए।
तभी वहाँ से बंदरों का एक झुंड गुजर रहा था। उनमें से एक बंदर जो बहुतशरारती था, वह लट्टे के बीच फंसे कील को पकड़ कर जोर-जोर से हिलाने लगा। चिरे हुए भाग की तरफ बैठने के कारण उसकी पूंछ दोनों हिस्सों के बीच में थी। 
जोर-जोर से कील हिलाने के कारण कील निकल गई और लटे के दोनों हिस्से आपस में जुड़ गए जिसके बीच उसकी पूंछ दब गई। अब बंदर जोर से चीखा मगर अब क्या हो सकता था। बस बंदर तड़प-तड़प कर वहीं मर गया।

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